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रावण संहिता (Ravan Sanhita) के प्राचीन तांत्रिक उपाय, जो चमका सकते है आपकी किस्मत

Ravan sanhita Jyotish Upay in Hindi : रावण एक असुर था, लेकिन वह सभी शास्त्रों का जानकार और प्रकाण्ड विद्वान भी था। रावण ने ज्योतिष और तंत्र शास्त्र संबंधी ज्ञान के लिए रावण संहिता की रचना की थी। रावण संहिता में ज्योतिष और तंत्र शास्त्र के माध्यम से भविष्य को जानने के कई रहस्य बताए गए हैं। इस संहिता में बुरे समय को अच्छे समय में बदलने के लिए भी चमत्कारी तांत्रिक उपाय बताए हैं। जो भी व्यक्ति इन तांत्रिक उपायों को अपनाता है उसकी किस्मत बदलने में अधिक समय नहीं लगता है। रावण एक असुर था, लेकिन वह सभी शास्त्रों का जानकार और प्रकाण्ड विद्वान भी था। रावण ने ज्योतिष और तंत्र शास्त्र संबंधी ज्ञान के लिए रावण संहिता की रचना की थी। रावण संहिता में ज्योतिष और तंत्र शास्त्र के माध्यम से भविष्य को जानने के कई रहस्य बताए गए हैं। इस संहिता में बुरे समय को अच्छे समय में बदलने के लिए भी चमत्कारी तांत्रिक उपाय बताए हैं। जो भी व्यक्ति इन तांत्रिक उपायों को अपनाता है उसकी किस्मत बदलने में अधिक समय नहीं लगता है। 1. धन प्राप्ति के लिए उपाय – किसी भी शुभ मुहूर्त में या किसी शुभ दिन सुबह जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन प्राप्ति मंत्र का जप करें। धन प्राप्ति का मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा। इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें। जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपके लिए धन प्राप्ति के योग बनेंगे। 2. यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए।यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार। मंत्र: ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा। इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाएगी और आपके धन में आ रही रुकावटें दूर होने लगेंगी। महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें। किसी शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, होली आदि की रात यह उपाय किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में यह उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार दीपावली की रात कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र लिखें। मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:। इस मंत्र का जप भी करना चाहिए। किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला या कमल गट्टे की माला के साथ मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं। इस उपाय से आपके घर में महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगेगी। 4. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय दीपावली के दिन किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के बाद सो जाएं और सुबह जल्दी उठें।नींद से जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए गए मंत्र का जप 108 बार करें।मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त होता है। यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें। उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप केवल 108 बार करें। मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा। मंत्र जप करते समय अपने पास धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब तीन माह हो जाएं तो यह कौड़ी अपनी तिजोरी में या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से जीवनभर आपको पैसों की कमी नहीं होगी। यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी स्थान पर धन गढ़ा हुआ है और आप वह धन प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। गड़ा धन प्राप्त करने के लिए यहां दिए गए मंत्र का जप दस हजार बार करना होगा। मंत्र: ऊँ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा। गड़े हुए धन के दर्शन करने के लिए विधि इस प्रकार है। किसी शुभ दिवस में यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या करें। मंत्र सिद्धि हो जाने के बाद जिस स्थान पर धन गड़ा हुआ है वहां धतुरे के बीज, हलाहल, सफेद घुघुंची, गंधक, मैनसिल, उल्लू की विष्ठा, शिरीष वृक्ष का पंचांग बराबर मात्रा में लें और सरसों के तेल में पका लें। इसके बाद इस सामग्री से गड़े धन की शंका वाले स्थान पर धूप-दीप ध्यान करें। यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या में करें। ऐसा करने पर उस स्थान से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का साया हट जाएगा। भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाएगा। साधक को भूमि में गड़ा हुआ धन दिखाई देने लगेगा। ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें। यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें। इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है। अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। सभी लोग इनके कहे को मानते हैं। सफेद आंकड़े के फूल को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे पीस लें और इसका तिलक

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काला जादू का पूरा सच्चाई/black magic full truth

काला जादू उसे कहते हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वार्थ को साधने का प्रयास करता है या किसी को नुकसान पहुंचाना के काम करता है। बंगाल और असम को काला जादू का गढ़ माना जाता रहा है। काले जादू के माध्यम से किसी को बकरी बनाकर कैद कर लिया जाता है या फिर किसी को वश में कर उससे मनचाहा कार्य कराया जा सकता है। काले जादू के माध्यम से किसी को किसी भी प्रकार के भ्रम में डाला जा सकता है और किसी को मारा भी जा सकता है।काला जादू शरीर में नकारात्‍मक ऊर्जा उत्‍पन्‍न करता है। ये शक्तियां बाहरी व्‍यक्ति के द्वारा भेजी जाती हैं जो उस व्‍यक्ति पर आतंरिक प्रभाव डालती है। दरअसल काला जादू मनोवैज्ञानिक ढंग से कार्य करता है। काला जादू करने वाले आपके अचेतन मन को पकड़ लेते हैं। इसका प्रभाव आपके मन पर होता है। काले जादू के अंतर्गत मूठकर्णी विद्या, वशीकरण, स्तंभन, मारण, भूत-प्रेत, टोने और टोटके आदि आते हैं। अधिकतर इसे तांत्रिक विद्या भी कहते हैं।और यह मेरा २२ साल की तजुर्बा से बता रहा हु। काली दुनिया ? क्या वास्तव में होता है ? लेकिन कंहा होता है इनकी दुनिया ?क्या धरती पर ? या आस्मां पर ? ऐसे नजाने कितने सवाल हमारे मन में चलता रहता है। तो आइये जानते हैं। असल में काली दुनिया जिसको हम साधारण भासा में प्रेत पिचास की रहने जगह कहते हैं। असल में यह हमारे इर्द गिर्द ही होता है लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पाते , कुछ तंत्र साधक या कुछ उच्कोटि के ब्रम्भण उनको महसूस करपाते हैं। या देखभी लेते हैं हैं असल में इनका कोई अलग दुनिया नहीं होती यह हमारे साथ ही उठते बैठते हैं और सबसे नजदीक रहने के कारण जल्द सिद्ध भी होजाते हैं। या बुलाने से आ भी जाते हैं। बहत समय देखा जाता है की , कोई बहत प्रसिद्ध यानि नेता ,अभिनेता ,बिज़नेस मेन ,या आम इंसान इनका चपेट में आ जाता है , इसके दो ही कारन होता है । या तो वो खुदसे शरीर पाने की कोसिस करते हैं ,क्यू की अक्सर देखा गया है उनका मृत्यु अकाल में होने के कारन उनका मनमे बहत सारि इच्छाएं रहजाता है जबतक पूरा ना करले वे शरीर बदल बदलके अपना काम को अंजाम देता रहता है। वे जिस सरीर में अपना बॉस बनता है उस शरीरऔर उसकी आसपास के इंसान को भी भारी नुक्सान पहंचता रहता है क्यू की उसे उस शरीर को अकेले पाना होता है सिर्फ सरीर ही नहीं आत्मा को अपना काबू में करलेते हैं फिर धीरे धीरे वो सरीर नस्ट होने लगता है एक समय वे नस्ट भी हो जाता है। अपने कभी यह देखा या सुना है ? की किसी युवती की शरीर में नाख़ून या दांत की निशाने अचानकसे पाए जाते है? अगर हा तो निश्चित रहिये उस शरीर किसी प्रेत का वास् होगा वे युवती धीरे धीरे सूखती जायगी चिरचिरा होती जायगी समय सादी भी नहीं होगी अगर जबर दस्ती सादी दे भी दिया तो यातो बिधबा होजाएगी या फिर अपने मइके अजायगी नहीं तो खुदकी जान लेलेगी बजह कोई भी हो। अकसर देखागया है और यह प्रमाणित है। अगर किसी युवक के शरीर में प्रवेश करता है तो उसका जीबन एकदम से बर्बाद होजाएगा जैसे नौकरी में परेशानी आना बिज़नेस में घाटा होना समझमे अपमानित होना क्यू की उस आत्मा का मकसद है उसका प्राण लेना क्यू की या तो आत्मा का काम पूरा होगया या उसका सरीर आत्मा का काम में न आना इसी कारण से वे युवक अपना जीवन खुद ही ख़तम करलेगा या अकाल मृत्यु के तरफ चलाजेगा या। आब आते हैं इसका दूसरा पहलु ——– जिसको तंत्र की भासा में चलान ,दुश्मनी या शत्रुता कहा जाता है। लेकिन यह सबके लिए नहीं होता क्यू की ना तो सभी करवासकता है और ना हर कोई करसकता है , असल में चलान उनके लिए होता है जो जीबन सब कुछ हासिल करचुका होता है ,जैसे नेता ,अभिनेता बड़े बिज़नेस मेन या बहत आमिर इंसान जिसके पास बहत सारी धनदौलत है। तब इनको प्रेत या पिचास चलान के द्वारा नुक्सान पहुंचाने की पूरी कोसिस करते हैं कई बार तो यह भी देखा गया की उन्हें जान से भी मारदिया है या सिर्फ इंसान अपना कार्य सिद्ध करने के लिए ही ऐसा करता हैतो क्या इसका तोर है ? जी है लेकिन इतना आसान भी नहीं होता मैंने ऐसे भी कई पंडित ब्रम्भन देखा है इसका तोर निकालने के लिए अपना जान भी गवा बैठते है। कई साधक ऐसा होंगे यह लेख पढ़ने के बाद सायद हस परे वे कहेंगे मेरे पास भूत प्रेत बहुत पिचास वासमे है मई इतना बड़ा साधक हूँ मई पिचास साधक हु। सायद वे सही भी होंगे लेकिन मैंने यह पोस्ट के पहलेही लिखा है( काली दुनिया ) गुरुवर यह इतना आसान नहीं होता। मई कोई मुंडी घुमा घुमाके बोलने बाला चुरेल की बात नहीं कररहाहु। मै उस दुनिया की बात कररहा हु जिसदुनिया को काली दुनिया कहा जाता है।अब कुछ इंसान यह बोलेंगे इसका उपाय क्या है ? अगर इतना जानकारी है तो उपाय भी बता दो। और कुछ यह भी बताएंगे कॉपी पेस्ट है। कुछ बताएँगे ऐसा कुछ नहीं होता। तो सज्जनो आपके जानकारी के लिए बतादू १०० में ९९ लोग इसी काली दुनिये का इस्तेमाल करके जीबन में बहत कुछ हासिल करचुका है ,बड़े से बड़े अभिनेता भी इस लिस्ट में शामिल है आगे भी करेंगे

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পঞ্চমকার সাধনা

পঞ্চমকার সাধনা

তন্ত্র বলতেই মানুষের ধারণা পঞ্চ ম কার অর্থাৎ মদ্য, মাংস, মৎস্য, মুদ্রা ও মৈথুন । কিন্তু তন্ত্র তা নয়। তনুকে ত্রাণ করে যা তাই তন্ত্র এবং মনকে ত্রাণ করে যা তাই মন্ত্র। নির্গুণ, নিরাকার পরব্রহ্মের মধ্যে সৃষ্টি বাসনা জাগ্রত হলে তিনি সগুণময়রূপ প্রকাশিত হন। এই গুণত্রয় তাঁর মধ্যেই সুপ্ত ছিল । সত্ত্ব, রজ, তম। সৃষ্টিকালে তাঁর মধ্যে এই ত্রিগুণই জাগ্রত হয়েছিল। এই সগুণময় ব্রহ্মই সৃষ্টি, স্থিতি, বিনাশ সক্ষম। তাই এঁকে নারীরূপে কল্পনা করা হয়েছে কারণ নারী জীবের জন্ম, পালন এবং বিনাশ সক্ষম। ইনিই শক্তি। ব্রহ্ম এবং শক্তি তাই অভেদ। অনেক সাধক এই সগুণ ব্রহ্ম এবং ক্রিয়াময়ী শক্তির মধ্যে আবার পৃথক সূক্ষ্ম পার্থক্য করেছেন ।এই শক্তি আবার বিদ্যা এবং অবিদ্যা শক্তিরূপে কর্ম করেন। বিদ্যা শক্তি জীবকে অজ্ঞান থেকে জ্ঞান সহায়ে মুক্ত করেন এবং অবিদ্যা শক্তি জীবকে অজ্ঞান দ্বারা বদ্ধ করেন। এই হল মায়া। বৈষ্ণবগণ মায়াকে তিনপ্রকার বলেছেন – পরা, অপরা, পরাপরা।এই মায়া দ্বারাই শক্তি জগত সৃষ্টি করেন। জগত সৃষ্টির প্রধান উপাদান পঞ্চ তত্ত্ব – রূপ, রস, শব্দ, গন্ধ, স্পর্শ ।এই পঞ্চ তত্ব থেকে পঞ্চভূত বা পঞ্চ তন্মাত্র – প্রথমে ব্যোম বা মহাশূন্যের মধ্যে এক সূক্ষ্ম ধারণী মাধ্যম যা ইথার নামে পরিচিত । দ্বিতীয় তেজ এরপর মরুৎ বা বায়ু, অপ বা জল এবং ক্ষিতি বা মাটি। এর থেকে আবার পঞ্চ জ্ঞাণেন্দ্রিয় – চক্ষু, কর্ণ, নাসিকা, জিহ্বা ও ত্বক। এরপর এই পঞ্চ জ্ঞাণেন্দ্রিয়র ইচ্ছা অনুযায়ী কর্ম সম্পাদনের জন্য পঞ্চ কর্মেন্দ্রিয় যা মিলিত হয়ে জীবদেহ তৈরী হচ্ছে।এই পঞ্চতত্ত্ব, পঞ্চতন্মাত্র এবং পঞ্চ জ্ঞাণেন্দ্রিয়র সমাহারে তৈরী হয় মন যা সৃষ্টি, স্থিতি ও বিনাশশীল। তাই শক্তি হলেন মনোময়ী।তাই তন্ত্র সাধনায় পাঁচ সংখ্যার এত ব্যবহার । পঞ্চ মুন্ডাসন, পঞ্চ ম কার, পঞ্চপল্লব।পঞ্চ ম কার দুই ভাবে সাধনা করা হয়। সাধারণত সাধক গণ যারা প্রবৃত্তি মার্গ হতে নিবৃত্তি মার্গে যাওয়ার সাধনা করেন তারা আক্ষরিক অর্থে মদ্য, মাংস, মৎস্য, মুদ্রা ও মৈথুনের সাধনা করেন। এইভাবে সাধনা অতি দুরূহ ।অধিকাংশ ক্ষেত্রেই পতন হয়ে থাকে । যেহেতু সাধারণ মানুষ পশুর ন্যায় তাই সাধারণ মানুষের জন্য পঞ্চ ম কার সাধনা বিহিত নয়। তারা জপ, ধ্যান, ভক্তি মার্গেই সাধনা করবেন।কিন্তু বীর সাধকগণ সূক্ষ্ম ভাবে এই সাধন করে থাকেন ।আগমসারে তাই বলা হচ্ছে -মদ্য– সাধ‌কের ব্রহ্মরন্ধ হই‌তে ক্ষ‌রিত সোম ধা‌রা‌কে ‘মদ্য’ ব‌লে। মাংস– মা অর্থে রসনা। রসনার অংশ বাক্য ও বাসনা অর্থাৎ বাক্য সংযম ক‌রে সেই যোগী পুরুষ‌কেই মাংস সাধক বলা যায়।মৎস্য– ইড়া, পিঙ্গলা ম‌ধ্যে যে শ্বাস প্রশ্বাস প্রবাহ তাহাই মৎস্য অর্থাৎ প্রণায়াম দ্বারা প্রান‌কে স্হির ক‌রেন তি‌নি মৎস্য সাধক।মুদ্রা– স্বশরীরস্হ মস্ত‌কে সহস্রদল ক‌র্ণিকা মধ্য‌স্হিত পার‌দের ন্যায় নির্মল শুভ্রবর্ণ কো‌টি সূর্য্যচন্দ্র আভা অপেক্ষা অধিক প্রকাশ অথচ শীতল আভাযুক্ত কমনীয় এবং মহাকুণ্ড‌লিনী সংযুক্ত যে আত্মা আছেন তাহা‌কে যি‌নি জে‌নে‌ছেন তি‌নিই মুদ্রা সাধক।‌মৈথুন– সাধনায় বদ্ধ জীবাত্মা‌কে মুক্ত ক‌রিয়া পরমাত্মার স‌হিত মিলন‌কে মৈথুন ব‌লে।এই মৈথুন সাধনায় বীরাচারী সাধক নিজেকে শিব এবং নারীকে শক্তি ভেবে রমণের মাধ্যমে শক্তিকে সন্তুষ্ট করে থাকেন । এই সাধনায় ভৈরবী প্রয়োজনে। ভৈরবী হলেন ভৈরব বা সাধকের শক্তি। তাই নিজ স্ত্রী থাকলে তিনিই এই ভৈরবী হয়ে সাধক র সাধন সহায়িনী হন। অন্য নারীকে ভৈরবী করতে গেলেও তাঁকে শৈবমতে বিবাহ করার নির্দেশ রয়েছে । কারণ শ্যামা রহস্যমের সেই শ্লোকটিতেই বলা হচ্ছে একই কালিকা দেবী সন্তান জন্ম কালে জননী রূপে, স্নেহকালে কন্যারূপে, ভোগ বা সম্ভোগকালে ভার্য্যা বা পত্নীরূপে এবং অন্তকালে ইষ্টদেবী কালীর রূপে ত্রিভূবনে বিরাজ করছেন। মদ্য, মাংস, মৎস্য, মুদ্রা ও মৈথুন।আদ্যতত্ত্বং বি‌দ্ধি‌তে‌জো দ্বিতীয়ং পবনং প্রি‌য়ে।।অপস্তৃতীয়ং জানী‌হি চতুর্থং পৃ‌থিবীং শি‌বে।পঞ্চমং জগদাধারং বিয়‌দ্বি দ্ধি বরান‌নে।। ( মহা‌নির্বাণ তন্ত্র )।‌প্রি‌য়ে তেজই আদ্যতত্ত্ব মদ্য ; পবন দ্বিতীয় তত্ত্ব মাংস ; জল তৃতীয় তত্ত্ব মৎস্য ; পৃ‌থিবী চতুর্থ তত্ত্ব পবন আর এই জগদাধার অন্তরীক্ষই পঞ্চম তত্ত্ব মৈথুন।তাই পঞ্চতত্ত্ব স্বরূপ পঞ্চদেবতার আসনে নির্গুণ পরব্রহ্ম স্বরূপ উলঙ্গ শবশিব শুয়ে। শবশিবের শিশ্ন কিন্তু উত্থিত কারণ তাঁর মধ্যে সৃষ্টি বাসনা জাগ্রত । তাঁর নাভিকমল অর্থাৎ কেন্দ্র হতে প্রকাশিত সগুণ শিব যাঁর কোলে উপবিষ্টা উলঙ্গিনী কালী পরাশক্তি কারণ শক্তি বিশ্বব্যাপিনী। তিনিই সৃষ্টি, স্থিতি, বিনাশ কারিণী। তিনিই জীবের কর্ম সঞ্চিত রেখে কর্মের ফল দান করেন। এই জগত সংসার তাঁরই ছায়ামাত্র। নিত্য নিরন্তর তিনি শিবের সঙ্গে রমণ করে চলেছেন এই সৃষ্টি কার্য্য পরিচালনার জন্য। একই সঙ্গে তিনি পালন করছেন এই সৃষ্টিকে আবার বিনাশও করছেন। আধুনিক বিজ্ঞান একে জড় শক্তি বলছে কিন্তু তন্ত্রে ইনিই চৈতন্য রূপিণী।

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adirshya tantra dhumavati

धूमावती साधना ?

दस महाविद्याओं में धूमावती महाविद्या साधना अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस साधना के बारे में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, प्रथम तो यह दुर्गा की विशेष कलह निवारिणी शक्ति है, दूसरी यह कि यह पार्वती का विशाल एवं रक्ष स्वरूप है, जो क्षुधा से विकलित कृष्ण वर्णीय रूप है, जो अपने भक्तों को अभय देने वाली तथा उनके शत्रुओं के लिए साक्षात काल स्वरूप है। साधना के क्षेत्र में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। जहाँ धूमावती साधना सम्पन्न होती है, वहाँ इसके प्रभाव से शत्रु-नाश एवं बाधा-निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तान्त्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेत, पिशाच व अन्य तन्त्र-बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अपितु उसकी प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है।           धूमावती का स्वरूप क्षुधा अर्थात भूख से पीड़ित स्वरूप है और इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है तो देवी प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती हैं।           दस महाविद्याओं में धूमावती एक प्रमुख महाविद्या है, जिसे सिद्ध करना साधक का सौभाग्य माना जाता है। जो लोग साहसपूर्वक जीवन को निष्कण्टक रूप से प्रगति की ओर ले जाना चाहते हैं, उन्हें भगवती धूमावती साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए। भगवती धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक को निम्न लाभ स्वतः मिलने लगते हैं —–१. धूमावती सिद्ध होने पर साधक का शरीर मजबूत व सुदृढ़ हो जाता है। उस पर गर्मी, सर्दी, भूख, प्यास और किसी प्रकार की बीमारी का तीव्र प्रभाव नहीं पड़ता है।२. धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक की आँखों में साक्षात् अग्निदेव उपस्थित रहते हैं और वह तीक्ष्ण दृष्टि से जिस शत्रु को देखकर मन ही मन धूमावती मन्त्र का उच्चारण करता है, वह शत्रु तत्क्षण अवनति की ओर अग्रसर हो जाता है।३. इस साधना के सिद्ध होने पर साधक की आँखों में प्रबल सम्मोहन व आकर्षण शक्ति आ जाती है।४. इस साधना के सिद्ध होने पर भगवती धूमावती साधक की रक्षा करती रहती है और यदि वह भीषण परिस्थितियों में या शत्रुओं के बीच अकेला पड़ जाता है तो भी उसका बाल भी बाँका नहीं होता है। शत्रु स्वयं ही प्रभावहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं। इस साधना के माध्यम से आपके जितने भी शत्रु हैं, उनका मान-मर्दन कर जो भी आप पर तन्त्र प्रहार करता है, उस पर वापिस प्रहार कर उसी की भाषा में जबाब दिया जा सकता है। जिस प्रकार तारा समृद्धि और बुद्धि की, त्रिपुर सुन्दरी पराक्रम और सौभाग्य की सूचक मानी जाती है, ठीक उसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार कर नेस्तनाबूँद करने वाली देवी मानी जाती है। यह अपने आराधक को बड़ी तीव्र शक्ति और बल प्रदान करने वाली देवी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपों में साधक की सहायता करती  है। सांसारिक सुख अनायास ऐसे ही प्राप्त नहीं हो जाते, उनके लिए साधनात्मक बल की आवश्यता होती है, जिससे शत्रुओं से बचा रहकर बराबर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहा जा सके। मगर आज के समय में आपके आसपास रहने वाले और आपके नजदीकी लोग ही कुचक्र रचते रहते हैं और आप सोचते रहते हैं कि आपने किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं है तो मेरा कोई क्यों बुरा सोचेगा, काश!ऐसा ही होता!           मगर सांसारिक बेरहम दुनिया में कोई किसी को चैन  से रहते हुए नहीं देख सकता और आपकी पीठ पीछे कुचक्र चलते ही रहते हैं। इनसे बचाव का एक ही सही तरीका है, धूमावती साधना। इसके बिना आप एक कदम नहीं चल सकते, समाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते है कि अचानक से किसी परिवार में परेशानियाँ शुरू हो जाती है और व्यक्ति जब ज्यादा परेशान होता है तो किसी डॉक्टर को दिखाता है, मगर महीनों इलाज कराने के बावज़ूद भी बीमारी ठीक नहीं होती, तब कोई दूसरी युक्ति सोचकर किसी अन्य जानकार को दिखाता है और मालूम पड़ता है कि किसी ने कुछ करा दिया था या टोना-टोटका जैसा कुछ मामला था और जब इलाज कराया, तब वह ५-७ दिन में बिलकुल ठीक हो गया। ऐसे में जो पढ़े-लिखे व्यक्ति होते हैं, उन्हें भी इस पर विश्वास हो जाता है कि वास्तव में इस समाज में रहना कितना मुश्किल काम है।           धूमावती दारूण विद्या है। सृष्टि में जितने भी दुःख, दारिद्रय, चिन्ताएँ, बाधाएँ  हैं, इनके शमन हेतु धूमावती से ज्यादा श्रेष्ठ उपाय कोई और नहीं है। जो व्यक्ति इस महाशक्ति की आराधना-उपासना करता है, उस पर महादेवी प्रसन्न होकर उसके सारे शत्रुओं का भक्षण तो करती ही है, साथ ही उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होने देती। क्योंकि इस साधना से माँ भगवती धूमावती लक्ष्मी-प्राप्ति में आ रही बाधाओं का भी भक्षण कर लेती है। अतः लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु भी इस शक्ति की पूजा करते रहना चाहिए।साधना विधान :———-                    इस साधना को धूमावती जयन्ती, किसी भी माह की अष्टमी, अमावस्या अथवा रविवार के दिन से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को किसी खाली स्थान पर, श्मशान, जंगल, गुफा या किसी भी एकान्त स्थान या कमरे में करनी चाहिए।           यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात में ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। नहाकर लालवस्त्र धारण कर गुरु पीताम्बर ओढ़कर लाल ऊनी आसन पर बैठकर पश्चिम दिशा की ओर मुँहकर साधना करनी चाहिए।           साधक अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछा लें। इस साधना में माँ भगवती धूमावती का चित्र, धूमावती यन्त्र और काली हकीक माला की विशेष उपयोगिता बताई गई है, परन्तु यदि सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताम्र पात्र में “धूं” बीज का अंकन काजल से करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही माँ धूमावती मानकर उसका पूजन करना चाहिए। जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग किया जा सकता है।           सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से धूमावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।           इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और “ॐ वक्रतुण्डाय हूं” मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।           फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और “ॐ अघोर रुद्राय नमः” मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान अघोर रुद्र

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