भैरवी चक्र साधना में जाति धर्म पर विचार नहीं होता। यह साधना सभी साधकों को समानता देती है। इसमें छुआ-छूत का विचार नहीं है।
साधक का जीवन चर्या बहुत ही नियमित होना चाहिए जैसे शाकाहारी भोजन करना , सुध रहना साफ सुथरा रहना , अकेले सोना , ज्यादा न बोलना , उत्तेजक वस्तु न देखना , मतलब पूर्ण रूपसे ब्रम्भचारी का पालन करना।
भैरवी साधना करने से पहले गुरु आवश्यक है क्यू की यह गुरु मुखी बिद्या है ,
भैरवी साधना को लेके बहतो ने बहत कुछ बोला है लेकिन यह इतना आसान नहीं है। पहले तो साधक को भैरव होना जरुरी है उसके बाद भैरवी , अब अता है भैरवी कैसा होना चाहिए ? यह भी आपकी गुरु बताएँगे , लेकिन फिरभी आपके सवाल का उत्तर देने के कोसीस जरूर करूंगा। भैरवी जितना सुन्दर होगा उतना ही अच्छा है , लेकिन सुंदरता का परिभासा वो आपके खुद के ऊपर है , मेरे कहने का मतलब है जिसको देखते ही आपके शरीर के रोम रोम उत्तेजित हो जाये।
भैरवी हमेशा पद्मा योनि के ही चुने।
सवसे पहले गुरु , फिर दिनचर्या , फिर प्राणायम ध्यान , फिर ईस्ट साधना , फिर योनि साधना , अंत में भैरवी साधना।
अगर आपलोग वाकई में यह साधना के बिषय में जानना चाहते हैं तो कमेंट कीजिये

====भैरवी=============तंत्र साधना शक्ति साधना है |शक्ति प्राप्त करके उससे मोक्ष की अवधारणा तंत्र की मूल अवधारणा है |स्त्रियों को शक्ति का रूप माना जाता है ,कारण प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा जिसे शक्ति कहते हैं स्त्रियों में शीघ्रता से अवतरित होती है ,और तंत्र शक्ति को शीघ्र और अत्यधिक पाने का मार्ग है अतः तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। तंत्र की एक निश्चित मर्यादा होती है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी ‘शक्ति’ का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, ‘शक्ति’ पर आधारित है।भैरवी ,स्त्री होती है और स्त्री शरीर रचना की दृष्टि से और मानसिक संरचना की दृष्टि से कोमल और भावुकता प्रधान होती है |यह उसका नैसर्गिक प्राकृतिक गुण है |उसमे ऋण ध्रुव अधिक शक्तिशाली होता है और शक्ति साधना प्रकृति के ऋण शक्ति की साधना ही है |इसलिए भैरवी में ऋण शक्ति का अवतरण अतिशीघ्र और सुगमता से होता है जबकि पुरुष अथवा भैरव में इसका वतरण और प्राप्ति कठिनता से होती है ,|इस कारण भैरव को भैरवी से शीघ्रता और सुगमता से शक्ति प्राप्त हो जाती है |भैरवी साधना या भैरवी पूजा का रहस्य यही है, कि साधक को इस बात का साक्षात करना होता है, कि स्त्री केवल वासनापूर्ति का एक माध्यम ही नहीं, वरन शक्ति का उदगम भी होती है और यह क्रिया केवल सदगुरुदेव ही अपने निर्देशन में संपन्न करा सकते है, क्योंकि उन्हें ही अपने किसी शिष्य की भावनाओं व् संवेदनाओं का ज्ञान होता है। इसी कारणवश तंत्र के क्षेत्र में तो पग-पग पर गुरु साहचर्य की आवश्यकता पड़ती है, अन्य मार्गों की अपेक्षा कहीं अधिक। किन्तु यह भी सत्य है, कि समाज जब तक भैरवी साधना या श्यामा साधना जैसी उच्चतम साधनाओं की वास्तविकता नहीं समझेगा, तब तक वह तंत्र को भी नहीं समझ सकेगा, तथा, केवल कुछ धर्मग्रंथों पर प्रवचन सुनकर अपने आपको बहलाता ही रहेगा।