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Author name: Brambh

Sree Vidya Sadhnaa

श्रीविद्या साधना भारतवर्ष की परम रहस्यमयी सर्वोत्कृष्ट साधना प्रणाली मानी जाती है। ज्ञान, भक्ति, योग, कर्म आदि समस्त साधना प्रणालियों का समुच्चय (सम्मिलित रूप) ही श्रीविद्या-साधना है। जिस प्रकार अपौरूषेय वेदों की प्रमाणिकता है उसी प्रकार शिव प्रोक्त होने से आगमशास्त्र (तंत्र) की भी प्रमाणिकता है। सूत्ररूप (सूक्ष्म रूप) में वेदों में, एवं विशद्रूप से तंत्र-शास्त्रों में श्रीविद्या साधना का विवेचन है। शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक बताये गये है- मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के द्वादश उपासक है। श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्कराय, उमानन्द नाथ प्रमुख है। इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार भगवत् अवतारों दत्तात्रय, श्री परशुराम, भगवान ह्यग्रीव और आद्यशंकराचार्य ने किया है। श्रीविद्या साक्षात् ब्रह्मविद्या है। समस्त ब्रह्मांड प्रकारान्तर से शक्ति का ही रूपान्तरण है। सारे जीव-निर्जीव, दृश्य-अदृश्य, चल-अचल पदार्थो और उनके समस्त क्रिया कलापों के मूल में शक्ति ही है। शक्ति ही उत्पत्ति, संचालन और संहार का मूलाधार है। जन्म से लेकर मरण तक सभी छोटे-बड़े कार्यो के मूल में शक्ति ही होती है। शक्ति की आवश्यक मात्रा और उचित उपयोग ही मानव जीवन में सफलता का निर्धारण करती है, इसलिए शक्ति का अर्जन और उसकी वृद्धि ही मानव की मूल कामना होती है। धन, सम्पत्ति, समृद्धि, राजसत्ता, बुद्धि बल, शारीरिक बल, अच्छा स्वास्थ्य, बौद्धिक क्षमता, नैतृत्व क्षमता आदि ये सब शक्ति के ही विभिन्न रूप है। इन में असन्तुलन होने पर अथवा किसी एक की अतिशय वृद्धि मनुष्य के विनाश का कारण बनती है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है कि शक्ति की प्राप्ति पूर्णता का प्रतीक नहीं है, वरन् शक्ति का सन्तुलित मात्रा में होना ही पूर्णता है। शक्ति का सन्तुलन विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। वहीं इसका असंतुलन विनाश का कारण बनता है। समस्त प्रकृति पूर्णता और सन्तुलन के सिद्धांत पर कार्य करती है। जीवन के विकास और उसे सुन्दर बनाने के लिये धन-ज्ञान और शक्ति के बीच संतुलन आवश्यक है। श्रीविद्या-साधना वही कार्य करती है, श्रीविद्या-साधना मनुष्य को तीनों शक्तियों की संतुलित मात्रा प्रदान करती है और उसके लोक परलोक दोनों सुधारती है। श्रीविद्या-साधना ही एक मात्र ऐसी साधना है जो मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करती है। श्रीविद्या-साधना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अत्यंत सरल, सहज और शीघ्र फलदायी है। सामान्य जन अपने जीवन में बिना भारी फेरबदल के सामान्य जीवन जीते हुवे भी सुगमता पूर्वक साधना कर लाभान्वित हो सकते है। यह साधना व्यक्ति के सर्वांगिण विकास में सहायक है। कलियुग में श्रीविद्या की साधना ही भौतिक, आर्थिक समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन है। देवताओं और ऋषियों द्वारा उपासित श्रीविद्या-साधना वर्तमान समय की आवश्यकता है। यह परमकल्याणकारी उपासना करना मानव के लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है। आज के युग में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, अशांति, सामाजिक असंतुलन और मानसिक तनाव ने व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमताओं को कुण्ठित कर दिया है। श्रीविद्या-साधक के जीवन में भी सुख-दुःख का चक्र तो चलता है, लेकिन अंतर यह है कि श्रीविद्या-साधक की आत्मा व मस्तिष्क इतने शक्तिशाली हो जाते है कि वह ऐसे कर्म ही नहीं करता कि उसे दुःख उठाना पड़े किंतु फिर भी यदि पूर्व जन्म के संस्कारों, कर्मो के कारण जीवन में दुःख संघर्ष है तो वह उन सभी विपरीत परिस्थितियों से आसानी से मुक्त हो जाता है। वह अपने दुःखों को नष्ट करने में स्वंय सक्षम होता है।……………………………………………………………………………………..हर-हर महादेव GURU BRAMBH NATH

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Tantra Maha Vigyaan part 1

शक्ति। पार्ट 1 एक छोटा सा शब्द है। मगर इसमें असीम ऊर्जा छुपी हुई है। इस बात का अनुभव हर बार हुआ है जब जब में भगवती के चरणों में गया है। क्योंकि शक्ति वही तो है जो ये समग्र संसार को चलित करती है। उसी शक्ति की उपेक्षा एक बार जगदगुरू शंकराचार्य जी ने की थी और तुरंत ही शक्ति हीन हो गए और उन्हें ये बात तुरंत समझ में आ गई के इसके बिना तो अस्तित्व ही नहीं है किसी का भी इस संसार में। एक बार जब में निराश और उदास होकर बैठा था तब वो एक बूढ़ी मैया का रूप लेकर मेरे पास आई थी और मुझे बोली बेटा कुछ खाना है क्या मिल सकता है। मेने भी बोल दिया क्या खाना है। उसने बोला जो तुम खिलाओ। मेने उसे उस दिन सामने आई दुकान से एक दाबेली खिला दी। वो खुश हो गई और बोली की बेटा तुम हमेशा खुश रहो। बस उसी दूसरे दिन से मेरे जीवन का चक्र ये घुमा की आज दिन तक कभी नही रुका। में उस दिन चूक गया भगवती इतने पास थी और में पकड़ नही पाया उसके चरण। वो जब कृपा करती है तो पलक झपकते है दुनिया के सारे काम कर देती है। छोटा था तब माता मुझे बहोत लाड और प्यार करती थी। वो हमेशा मुजपर अपना स्नेह बनाए रखती थी और वो भी बिना किसी स्वार्थ के। वही काम मेरी भगवती कर रही है। में उसे कितना भी दूर जाऊ वो मुझे अपने पास लेकर आ जाती है। उसकी सेवा न करू तो भी वो दूसरे दिन राह देखती है की कल आएगा सेवा करने के लिए। एक दिन पूजा ना करू तो वो दूसरे दिन वही बैठी रहती है अपनी पूजा करवाने के लिए। वही प्रेम से वो मुझे पुकारती है और जब उसके पास बैठता हु तो बोलती है की बेटा आ गया। कल तो मेरे पास आया नही तू। में तो तेरी राह देखती ही रह गई। में बोलता हु क्या करू ये दुनिया के चक्कर में उलझ जाता हु मैया। कभी कभी काम की वजह से नही कर पता तेरी सेवा अब तुझे भी समझना पड़ेगा ये बात को। वो तुरंत बोलती कोई बात नही बेटा तू तो बस मेरे पास आया कर उतना ही काफी है मेरे लिए। ये सारी दुनिया मेरी सेवा करती है। तू काम करके थक जाता है समझती हु तेरी बात को। फिर जब सोने जाता यू में तब चुपके से आकर मेरा सर दबाने लगती है और बोलती है की बेटा तू सो जा में तेरा सर दबा दूंगी। में हाथ हटाकर तुरंत खड़ा हो जाता हु और बोलता हु अरे ये क्या कर रही हो भगवती। दुनिया क्या बोलेगी मुझे दुर्गा माता से अपना सर दबवा रहा। लोग मुझे गालियां देते फिरेंगे और बोलेगा बड़ा आ गया जो भगवती से सेवा करवायेगा। तेरे सारे भक्त नाराज हो जायेगे। वो हंस देती है और बोलती है अरे बेटा ऐसा होता है कभी। माता अपने बेटे की सेवा करे उसमे क्या बुरा है तू दुनिया की चिंता छोड़ दे और सो जा। पता नही उसी वक्त कब नींद आ जाती है मुझे।

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Vastu our per /

वास्तु और पेड़ वास्तु में गलती से भी घर में कुछ पौधे न लगाएं। क्योंकि परंपरा के अनुसार पारिस्थितिकी का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि अगर घर को वास्तु के अनुसार सजाया जाए तो परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यदि आप वास्तु के अनुसार कार्य करते हैं तो जीवन में कोई समस्या नहीं है। वहीं जो लोग वास्तु के नियमों का पालन नहीं करते हैं उनके घर में वास्तु दोष होता है। सभी कार्य बाधाओं के साथ आते हैं। दीवारों पर चित्रित चित्रों से लेकर देवी-देवताओं की मूर्तियों तक, कई लोग घर को सजाने के लिए विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करते हैं। इसके अलावा कई लोग घर में भी पौधे लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इन पौधों में ऐसे पौधे भी होते हैं जिन्हें अगर घर में लगाया जाए तो वास्तु दोष होता है। घर के सुधार में बाधाएं आती हैं। घर में कोई भी पौधा न लगाएं-

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Kaalaa Jadu ?

काला जादू उसे कहते हैं जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वार्थ को साधने का प्रयास करता है या किसी को नुकसान पहुंचाना के काम करता है। बंगाल और असम को काला जादू का गढ़ माना जाता रहा है। काले जादू के माध्यम से किसी को बकरी बनाकर कैद कर लिया जाता है या फिर किसी को वश में कर उससे मनचाहा कार्य कराया जा सकता है। काले जादू के माध्यम से किसी को किसी भी प्रकार के भ्रम में डाला जा सकता है और किसी को मारा भी जा सकता है।काला जादू शरीर में नकारात्‍मक ऊर्जा उत्‍पन्‍न करता है। ये शक्तियां बाहरी व्‍यक्ति के द्वारा भेजी जाती हैं जो उस व्‍यक्ति पर आतंरिक प्रभाव डालती है। दरअसल काला जादू मनोवैज्ञानिक ढंग से कार्य करता है। काला जादू करने वाले आपके अचेतन मन को पकड़ लेते हैं। इसका प्रभाव आपके मन पर होता है। काले जादू के अंतर्गत मूठकर्णी विद्या, वशीकरण, स्तंभन, मारण, भूत-प्रेत, टोने और टोटके आदि आते हैं। अधिकतर इसे तांत्रिक विद्या भी कहते हैं।और यह मेरा २२ साल की तजुर्बा से बता रहा हु। काली दुनिया ? क्या वास्तव में होता है ? लेकिन कंहा होता है इनकी दुनिया ?क्या धरती पर ? या आस्मां पर ? ऐसे नजाने कितने सवाल हमारे मन में चलता रहता है। तो आइये जानते हैं। असल में काली दुनिया जिसको हम साधारण भासा में प्रेत पिचास की रहने जगह कहते हैं। असल में यह हमारे इर्द गिर्द ही होता है लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पाते , कुछ तंत्र साधक या कुछ उच्कोटि के ब्रम्भण उनको महसूस करपाते हैं। या देखभी लेते हैं हैं असल में इनका कोई अलग दुनिया नहीं होती यह हमारे साथ ही उठते बैठते हैं और सबसे नजदीक रहने के कारण जल्द सिद्ध भी होजाते हैं। या बुलाने से आ भी जाते हैं। बहत समय देखा जाता है की , कोई बहत प्रसिद्ध यानि नेता ,अभिनेता ,बिज़नेस मेन ,या आम इंसान इनका चपेट में आ जाता है , इसके दो ही कारन होता है । या तो वो खुदसे शरीर पाने की कोसिस करते हैं ,क्यू की अक्सर देखा गया है उनका मृत्यु अकाल में होने के कारन उनका मनमे बहत सारि इच्छाएं रहजाता है जबतक पूरा ना करले वे शरीर बदल बदलके अपना काम को अंजाम देता रहता है। वे जिस सरीर में अपना बॉस बनता है उस शरीरऔर उसकी आसपास के इंसान को भी भारी नुक्सान पहंचता रहता है क्यू की उसे उस शरीर को अकेले पाना होता है सिर्फ सरीर ही नहीं आत्मा को अपना काबू में करलेते हैं फिर धीरे धीरे वो सरीर नस्ट होने लगता है एक समय वे नस्ट भी हो जाता है। अपने कभी यह देखा या सुना है ? की किसी युवती की शरीर में नाख़ून या दांत की निशाने अचानकसे पाए जाते है? अगर हा तो निश्चित रहिये उस शरीर किसी प्रेत का वास् होगा वे युवती धीरे धीरे सूखती जायगी चिरचिरा होती जायगी समय सादी भी नहीं होगी अगर जबर दस्ती सादी दे भी दिया तो यातो बिधबा होजाएगी या फिर अपने मइके अजायगी नहीं तो खुदकी जान लेलेगी बजह कोई भी हो। अकसर देखागया है और यह प्रमाणित है। अगर किसी युवक के शरीर में प्रवेश करता है तो उसका जीबन एकदम से बर्बाद होजाएगा जैसे नौकरी में परेशानी आना बिज़नेस में घाटा होना समझमे अपमानित होना क्यू की उस आत्मा का मकसद है उसका प्राण लेना क्यू की या तो आत्मा का काम पूरा होगया या उसका सरीर आत्मा का काम में न आना इसी कारण से वे युवक अपना जीवन खुद ही ख़तम करलेगा या अकाल मृत्यु के तरफ चलाजेगा या। आब आते हैं इसका दूसरा पहलु ——– जिसको तंत्र की भासा में चलान ,दुश्मनी या शत्रुता कहा जाता है। लेकिन यह सबके लिए नहीं होता क्यू की ना तो सभी करवासकता है और ना हर कोई करसकता है , असल में चलान उनके लिए होता है जो जीबन सब कुछ हासिल करचुका होता है ,जैसे नेता ,अभिनेता बड़े बिज़नेस मेन या बहत आमिर इंसान जिसके पास बहत सारी धनदौलत है। तब इनको प्रेत या पिचास चलान के द्वारा नुक्सान पहुंचाने की पूरी कोसिस करते हैं कई बार तो यह भी देखा गया की उन्हें जान से भी मारदिया है या सिर्फ इंसान अपना कार्य सिद्ध करने के लिए ही ऐसा करता हैतो क्या इसका तोर है ? जी है लेकिन इतना आसान भी नहीं होता मैंने ऐसे भी कई पंडित ब्रम्भन देखा है इसका तोर निकालने के लिए अपना जान भी गवा बैठते है। कई साधक ऐसा होंगे यह लेख पढ़ने के बाद सायद हस परे वे कहेंगे मेरे पास भूत प्रेत बहुत पिचास वासमे है मई इतना बड़ा साधक हूँ मई पिचास साधक हु। सायद वे सही भी होंगे लेकिन मैंने यह पोस्ट के पहलेही लिखा है( काली दुनिया ) गुरुवर यह इतना आसान नहीं होता। मई कोई मुंडी घुमा घुमाके बोलने बाला चुरेल की बात नहीं कररहाहु। मै उस दुनिया की बात कररहा हु जिसदुनिया को काली दुनिया कहा जाता है।अब कुछ इंसान यह बोलेंगे इसका उपाय क्या है ? अगर इतना जानकारी है तो उपाय भी बता दो। और कुछ यह भी बताएंगे कॉपी पेस्ट है। कुछ बताएँगे ऐसा कुछ नहीं होता। तो सज्जनो आपके जानकारी के लिए बतादू १०० में ९९ लोग इसी काली दुनिये का इस्तेमाल करके जीबन में बहत कुछ हासिल करचुका है ,बड़े से बड़े अभिनेता भी इस लिस्ट में शामिल है आगे भी करेंगे

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Bhairavi sadhna part 1

भैरवी चक्र साधना में जाति धर्म पर विचार नहीं होता। यह साधना सभी साधकों को समानता देती है। इसमें छुआ-छूत का विचार नहीं है। साधक का जीवन चर्या बहुत ही नियमित होना चाहिए जैसे शाकाहारी भोजन करना , सुध रहना साफ सुथरा रहना , अकेले सोना , ज्यादा न बोलना , उत्तेजक वस्तु न देखना , मतलब पूर्ण रूपसे ब्रम्भचारी का पालन करना।भैरवी साधना करने से पहले गुरु आवश्यक है क्यू की यह गुरु मुखी बिद्या है ,भैरवी साधना को लेके बहतो ने बहत कुछ बोला है लेकिन यह इतना आसान नहीं है। पहले तो साधक को भैरव होना जरुरी है उसके बाद भैरवी , अब अता है भैरवी कैसा होना चाहिए ? यह भी आपकी गुरु बताएँगे , लेकिन फिरभी आपके सवाल का उत्तर देने के कोसीस जरूर करूंगा। भैरवी जितना सुन्दर होगा उतना ही अच्छा है , लेकिन सुंदरता का परिभासा वो आपके खुद के ऊपर है , मेरे कहने का मतलब है जिसको देखते ही आपके शरीर के रोम रोम उत्तेजित हो जाये।भैरवी हमेशा पद्मा योनि के ही चुने।सवसे पहले गुरु , फिर दिनचर्या , फिर प्राणायम ध्यान , फिर ईस्ट साधना , फिर योनि साधना , अंत में भैरवी साधना।अगर आपलोग वाकई में यह साधना के बिषय में जानना चाहते हैं तो कमेंट कीजिये ====भैरवी=============तंत्र साधना शक्ति साधना है |शक्ति प्राप्त करके उससे मोक्ष की अवधारणा तंत्र की मूल अवधारणा है |स्त्रियों को शक्ति का रूप माना जाता है ,कारण प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा जिसे शक्ति कहते हैं स्त्रियों में शीघ्रता से अवतरित होती है ,और तंत्र शक्ति को शीघ्र और अत्यधिक पाने का मार्ग है अतः तंत्र के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के उपरांत साधक को किसी न किसी चरण में भैरवी का साहचर्य ग्रहण करना पड़ता ही है। तंत्र की एक निश्चित मर्यादा होती है। प्रत्येक साधक, चाहे वह युवा हो, अथवा वृद्ध, इसका उल्लंघन कर ही नहीं सकता, क्योंकि भैरवी ‘शक्ति’ का ही एक रूप होती है, तथा तंत्र की तो सम्पूर्ण भावभूमि ही, ‘शक्ति’ पर आधारित है।भैरवी ,स्त्री होती है और स्त्री शरीर रचना की दृष्टि से और मानसिक संरचना की दृष्टि से कोमल और भावुकता प्रधान होती है |यह उसका नैसर्गिक प्राकृतिक गुण है |उसमे ऋण ध्रुव अधिक शक्तिशाली होता है और शक्ति साधना प्रकृति के ऋण शक्ति की साधना ही है |इसलिए भैरवी में ऋण शक्ति का अवतरण अतिशीघ्र और सुगमता से होता है जबकि पुरुष अथवा भैरव में इसका वतरण और प्राप्ति कठिनता से होती है ,|इस कारण भैरव को भैरवी से शीघ्रता और सुगमता से शक्ति प्राप्त हो जाती है |भैरवी साधना या भैरवी पूजा का रहस्य यही है, कि साधक को इस बात का साक्षात करना होता है, कि स्त्री केवल वासनापूर्ति का एक माध्यम ही नहीं, वरन शक्ति का उदगम भी होती है और यह क्रिया केवल सदगुरुदेव ही अपने निर्देशन में संपन्न करा सकते है, क्योंकि उन्हें ही अपने किसी शिष्य की भावनाओं व् संवेदनाओं का ज्ञान होता है। इसी कारणवश तंत्र के क्षेत्र में तो पग-पग पर गुरु साहचर्य की आवश्यकता पड़ती है, अन्य मार्गों की अपेक्षा कहीं अधिक। किन्तु यह भी सत्य है, कि समाज जब तक भैरवी साधना या श्यामा साधना जैसी उच्चतम साधनाओं की वास्तविकता नहीं समझेगा, तब तक वह तंत्र को भी नहीं समझ सकेगा, तथा, केवल कुछ धर्मग्रंथों पर प्रवचन सुनकर अपने आपको बहलाता ही रहेगा।

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