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Author name: Brambh

Bhairavi sadhna ke ek our Rhasya

Other methods of experiencing the joy of liberation through secret practices Other methods of experiencing the joy of liberation through secret practices like Yoni-worship, Lingarchan, Bhairavi-sadhana, Chakra-worship and Bankauli etc. are also described in Tantra-marg. But, all these methods are fruitful only when performed under the guidance of a qualified and experienced Guru. Here we want to throw a little light only on Bhairavi Sadhana among the secret practices of Tantra Marg. We will discuss other esoteric practices in some other book or article. It is said in Durga Saptashati – ‘स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु’ ।. That is, whatever exists in the world is in the form of a woman, otherwise it is lifeless. In Tantric practice, woman is considered a symbol of power. Without a woman, this practice was not considered successful. In the path of Tantra, respect for women is supreme and she is worshipable. ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ – This belief has real prestige in the path of Tantra. While people of conservative thinking have been calling women the ‘gateway to hell’, in Tantra Marg, she has been considered a goddess and has been given equal rights as men. In the path of Tantra, women of any caste are not considered inferior. There is mention in ‘Nirvana-Tantra’ regarding the qualification of the seeker/sadhika involved in Bhairavi Chakra worship – नात्राधिकार: सर्वेषां ब्रह्मज्ञान् साधकान् बिना । परब्रह्मोपासका: ये ब्रह्मज्ञा: ब्रह्मतत्परा: ।। शुद्धन्तकरणा: शान्ता: सर्व प्राणिहते रता: । निर्विकारा: निर्विकल्पा: दयाशीला: दृढ़व्रता: ।। सत्यसंकल्पका: ब्रह्मास्त एवात्राधिकारिण: ।। That is, not every person has the right to participate in Chakra Puja. No one can participate in this except the seeker who knows Brahma. Those who are worshipers of Brahma, who know Brahma, who are eager to attain Brahma, who have pure minds, who are peaceful, who are engaged in the welfare of all living beings, who are free from vices, who are free from dilemma. Those who are kind, those who remain firm on their vows, those who have true resolve, those who consider themselves as Brahmaya – only they are worthy of Bhairavi-Chakra-worship. The aim of Bhairavi Sadhana is to forget the world and experience Brahmananda through the molecular power of sexual energy present in the human body. Bhairavi-sadhana is completed in several stages. In the initial stage, the devotees of this Sadhana, men and women, sit in Sukhasana or Padmasana at a distance of two-three feet in front of each other, without touching each other, in a secluded and fragrant environment, naked and gazing into each other’s eyes and chanting Guru-Mantras. Let’s chant. By doing this continuously, the sexual desire within the devotees goes upward and incision thousands of people in the form of divine energy. In the second phase of this sadhana, men and women try to maintain the upward sexual desire by touching each other’s body parts. Meanwhile, chanting of Guru Mantra should be continued continuously. While performing external acts of sexual arousal, one should exercise full self-control to avoid ejaculation. By doing sadhana under Guru’s grace and Guru’s guidance, the sutras of restraint can be easily understood. In the last stage of Bhairavi Sadhana, male and female devotees perform the act of sexual intercourse with each other. This practice of physical enjoyment with equal feelings, equal faith, equal enthusiasm and equal restraint is called equal enjoyment or sexual intercourse. This action should be performed while chanting the mantra in a safe, fearless, unhesitating, non-conflict and shameless manner. Couple seekers should exercise full self-control and make every effort to ejaculate as late and simultaneously as possible. This is easily possible during Bhairavi Chakra puja under the guidance of an experienced guru. Many methods of Bhairavi Chakra have been described, Rajchakra, Mahachakra, Devchakra, Veerachakra, Pashuchakra etc. According to the Chakra-Bheda, there is a difference in the woman’s caste-character, worship-treatment, place-time and results in this sadhana. All the worshipers and devotees involved in the worship of Bhairavi Chakra become Bhairav and Bhairavi, because their body consciousness melts and they rise above the discrimination of body or caste. Vinâtu, one must follow Varnashram-karma outside Chakraarchan. On successful completion of Bhairavi Chakra puja, one gets a supernatural experience. Just as a spark comes out when two electric wires – phase and neutral – collide, in the same way, the extreme energy generated when both men and women ejaculate together, can penetrate thousands of waves in a single stroke and enable one to have a vision of Brahmanand. Is capable of. In Tantra Marg this is called ‘Brahma-Sukh’ – शक्ति-संगम संक्षोभात् शत्तäयावेशावसानिकम् । यत्सुखं ब्रह्मतत्त्वस्य तत्सुखं ब्रह्ममुच्यते ।। That is, the happiness of Brahmatattva that is obtained from the beginning of the Shakti-Sangam till the end of the Shakti-charge is called ‘Brahma-Sukh’. This experiment is the most unique among all the experiments that have been done till date to differentiate Sahasra Dal.

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surya devta ke liye kousa puja kare सूर्य के लिए किस देवता की पूजा करें ?

सूर्य ग्रह और उसकी स्थिति के अनुसार किन देवता की पूजा अधिक लाभ देगी ? =============================================== जिस देवता या ईश्वर या भगवान् को आप अपना मुख्य ईश्वर मानकर पूजा करते हैं वह आपके ईष्ट देवता होते हैं | ईष्ट देव दो प्रकार के होते हैं ,एक तो वह जिनको आधार मानकर हम अपनी मुक्ति की कामना रखते हैं ,दुसरे वह जो हमें हमारे जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाते हुए मुक्ति दिला सकें |हमने पहले बताया है की ईष्ट देवता का चुनाव बहुत से लोग अपनी पसंद के आधार पर भी करके पूजा कर रहे होते हैं ,कुछ लोग अपने गुरु के आधार पर ईष्ट देवता बनाते हैं और कुछ लोग अपनी जन्म कुंडली तथा ग्रहों के आशार पर ईष्ट देवता का चुनाव कर पूजा करते हैं जिससे उन्हें अधिकतम लाभ हो सके |यहाँ हम भौतिक कष्टों से मुक्ति ,सुखद जीवन की कामना के साथ मुक्ति भी दे सके ऐसे ईष्ट पर विचार कर रहे हैं |इसके लिए जन्मकुंडली से मुख्य उपास्य देवता /देवी अर्थात ईष्ट देव का विचार करते समय जन्म कुंडली के लग्न ,पंचम व् नवंम स्थान से विचार करें ,उनमे कौन सा ग्रह स्थित है ,कौन से ग्रहों की उनपर दृष्टि है |इनके स्वामी की क्या स्थिति है |इन सभी योगकारक पक्षों के आधार पर निर्णय करें |जो ग्रह बली हो उसके आधार पर उपासना करें |अथवा जो शुभ हो किन्तु कमजोर हो उसकी उपासना करें | कुछ ज्योतिषी यहाँ द्वादश भाव अथवा नवांश का द्वादश भी देखने की सलाह देते हैं किन्तु हमारा मत है की ऐसा केवल मुक्ति को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए |जब आवश्यकता भौतिक परिस्थितियों से पार पाते हुए मुक्ति की भी हो तो लग्न ,पंचम ,नवम ही महत्वपूर्ण होते हैं |नवम ,पंचम और लग्न में से जो सबसे अधिक शुभ अवस्था में हो भले वह कमजोर हो उसके ही स्वामी के अनुसार ईष्ट का चयन करें ,अथवा लग्न ,पंचम ,नवम की अपेक्षा यदि कोई इनमे बैठा ग्रह अधिक शुभ हो तो उसके अनुसार ईष्ट चयन करें |यहाँ पूर्ण विश्लेषण तो संभव नहीं और यह कुंडली के गंभीर विश्लेषण के बाद ही बताया जा सकता है की वास्तव में किसी के ईष्ट कौन होंगे ,पर किस ग्रह के अनुसार ,अथवा किन ग्रहों की युतियों के अनुसार किस देवता की अराधना अधिक शुभद और कलयाण कारक होगी यह जरुर यहाँ लिखा जा सकता है ,अतः यहाँ हम ग्रहों के अथवा उनकी युतियों के आधार पर ईष्ट देवता का सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिससे इनके चयन में आपको सहायता मिले |सबसे पहले आज हम सूर्य की स्थिति और उसकी ग्रह युतियों में किस देवता की पूजा अधिक लाभदायक होगी इस पर विचार करते हैं | सूर्य —– यदि कुंडली में सूर्य सर्वाधिक योगकारक हो ,शुभ हो और अकेले स्थित हो तो जातक को विष्णु ,शिव ,दुर्गा ,ज्वाला देवी ,ज्वाला मालिनी ,गायत्री ,आदित्य ,स्वर्णाकर्षण भैरव की उपासना करनी चाहिए |इनमे जैसी उसे अपनी आवश्यकता लगे उस अनुसार देवता का चुनाव कर सकता है | सूर्य -शनि अथवा सूर्य -राहू — यदि कुंडली में सूर्य -शनि अथवा सूर्य -राहू की युति हो अर्थात सूर्य योगकारक और शुभ तो हो किन्तु शनि अथवा राहू से युत हो तो उसका प्रभाव बदल जाता है और कुछ समस्याएं भी उत्पन्न होने लगती हैं और सूर्य को अपना फल देने में भी कठिनाई होती है |ऐसी स्थिति में जातक को महाकाली ,महाकाल ,तारा ,शरभराज ,नीलकंठ ,यम ,उग्र भैरव ,काल भैरव ,श्मशान भैरव की पूजा -आराधना करनी चाहिए और अपना ईष्ट बनाना चाहिए | सूर्य -बुध अथवा सूर्य -मंगल — यदि जन्म कुंडली में सूर्य के साथ बुध अथवा मंगल की युति हो तो जातक को गायत्री ,सरस्वती ,दुर्गा की उपासना करनी चाहिए और इनमे से किसी एक को अपना मुख्य उपाय देवता अर्थात ईष्ट देव बनाना चाहिए | सूर्य -शुक्र — सूर्य के साथ शुक्र की युति अलग प्रभाव उत्पन्न करती है जिससे जातक की आवश्यकताएं बदल जाती है ,उसकी प्रकृति परिवर्तित हो जाती है अतः जातक को मातंगी ,वासुदेव ,तारा ,कुबेर ,भैरवी ,श्री विद्या की उपासना करनी चाहिए अर्थात इनमे से किसी को मुख्य उपाय देवता के रूप में चुनना चाहिए | सूर्य -केतु — सूर्य के साथ केतु की युति हो तो छिन्नमस्ता ,आशुतोष शिव ,अघोर शिव की आराधना उत्तम होती है | सूर्य -शनि -राहू — सूर्य -शनि और राहू की युति हो जाने पर अनेक प्रकार के बदलाव और समस्याएं जीवन में उत्पन्न हो सकती हैं ,न चाहते हुए भी अनेक कठिनाइयाँ आती हैं अतः पाशुपताश्त्र ,[तंत्र -मंत्र ,अभिचार ,मारण आदि षट्कर्म से व्यक्ति के पीड़ित होने की सम्भावना रहती है ] रक्षा के लिए काली ,तारा ,प्रत्यांगिरा ,जातवेद दुर्गा की उपासना करनी चाहिए और इसी तरह के उग्र देवी -देवता का चयन अपने ईष्ट के रूप में करना चाहिए | | सूर्य -गुरु -राहू — बगलामुखी ,बागला चामुंडा ,उच्चिष्ठ गणपति ,वीरभद्र ,|केवल बगलामुखी उपासना से सिद्धि तो मिलेगी परन्तु या तो सिद्धि दूसरों के लिए नष्ट होगी या देवी नाराज होकर वापस ले लेगी ,इसलिए साथ में चामुंडा ,काली ,उच्चिष्ठ गणपति अथवा वीरभद्र की भी उपासना करें |शिव साथ में होने आवश्यक हैं | ………………[ क्रमशः -अगले अंकों में ]……………………………………………..हर हर महादेव

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Betal sadhna ? वीर बेताल साधना क्या है ?

ता दें कि आप चाहे पुरुष हो या फिर महिला, दोनों इस साधना को कर सकते हैं| वैसे तो यह एक तांत्रिक साधना है परंतु इसमें किसी भी प्रकार का दोष या वर्जना नहीं है, जो व्यक्ति गायत्री उपासक है या फिर देवता का उपासक है वह भी इस साधना को पूरा कर सकता है| और सबसे मुख्य बात यह है कि इस साधना में साधक को घबराने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं पड़ती है, यह साधना आप अपने घर पर भी बड़ी ही आसानी से संपन्न कर सकते हैं और वीर बेताल को सिद्ध करके उससे अपना मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं| इस साधना को पूरा कर लेने के बाद साधक के जीवन में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आता है, बल्कि उसके चेहरे पर चमक आ जाती है और उसकी सभी तकलीफ में धीरे-धीरे दूर होने लगती है|

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माँ धूमावती साधना विधि || Maa Dhumavati Sadhana Vidhi

माँ धूमावती साधना विधि || Maa Dhumavati Sadhana Vidhiआज हम आपको Maa Dhumavati Sadhana विधि के बारे में बताने जा रहे हैं ! यह तो आप सब जानते है की दस महाविद्याओं में सप्तम स्थान पर Maa Dhumavati Sadhana मानी जाती हैं ! इस साधना को करने से के बाद साधक के जीवन में बहुत ही समस्याओं का स्वयं ही निवारण हो जाता हैं !! Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे माँ धूमावती साधना विधि || Maa Dhumavati Sadhana Vidhi को जानकर आप भी महाविद्या धूमावती साधना पूरी कर सकते हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें माँ धूमावती साधना कब करें || Maa Dhumavati Sadhana Kab Kare :महाविद्या धूमावती साधना को करने के लिए साधक की समस्त सामग्री में विशेष रूप से सिद्धि युक्त होनी चाहिये ! यदि ऐसा नही हुई तो आप यह Maa Dhumavati Sadhana नही कर सकोंगे ! महाविद्या Dhumavati Sadhana के साधक को सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “धूमावती यंत्र”, “धूमावती माला”, ये चीजें होनी चाहिये ! महाविद्या धूमावती साधना आप नवरात्रि या किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार और रविवार के दिन से शुरू कर सकते हैं ! Maa Dhumavati Sadhana का समय शाम को 7 बजे रात्रि 12 के बीच के समय में कर सकते हैं ! माँ धूमावती साधना पूजा विधि || Maa Dhumavati Sadhana Puja Vidhi :महाविद्या धूमावती साधना वाले साधक को स्नान करके शुद्ध काले वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पश्चिम दिशा की तरफ़ मुख करके काले ऊनी आसन पर बैठ जाए ! उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर काले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर प्लेट रखकर काजल से “धूं” लिखें ! उसके बाद धूमावती यंत्र को गंगाजल से धोकर प्लेट के ऊपर लिखे धूं के ऊपर के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “धूमावती यंत्र” को स्थापित करें ! उसके बाद यन्त्र पर रोली से तीन बिंदी लगाये ! यह तीनों बिंदु सत्व, रज एवं तम गुणों के प्रतीक स्वरुप हैं ! उसके बाद यंत्र के सामने तेल का दीपक जलाकर यंत्र का पूजन करें और मन्त्र विधान के अनुसार संकल्प कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े : अस्य श्री धूमावती महामन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषि: त्रिव्रत् छन्द: श्री ज्येष्ठा धूमावती देवी धूं बीजं स्वाहा शक्ति: धँ कीलकं ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: । क्या आप सरकारी नौकरी चाहते हो तो यहाँ क्लिक करें: Click Hereसभी सरकारी योजना की जानकारी या लाभ लेने के लिए यहाँ क्लिक करें: Click Hereऋष्यादि न्यास : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! Maa Dhumavati Sadhana मंत्र : पिप्पलाद ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें ) त्रिव्रत् छन्दसे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें ) श्री ज्येष्ठा धूमावती देवतायै नम: हृदय ( हृदय को स्पर्श करें ) धूँ बीजाय नम: गुह्ये ( गुप्तांग को स्पर्श करें ) स्वाहा शक्तये नम: पादयोः ( दोनों पैर को स्पर्श करें ) विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें ) कर न्यास : अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है । धां अंगुष्ठाभ्यां नम:। धीं शिरसे स्वाहा । धूं मध्यमाभ्यां नम:। धैं अनामिकाभ्यां नम:। धौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ध: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।। ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! Maa Dhumavati Sadhana मंत्र : धां ह्रदयाय नम: ( ह्रदय को स्पर्श करें ) धीं शिरसे स्वाहा ( सिर को स्पर्श करें ) धूं शिखायै वष् ( शिखा को स्पर्श करें ) धैं कवचाय हुम् ( कंधे को स्पर्श करें ) धौं नेत्रत्रयाय वौषट् ( दोनों नेत्रों को स्पर्श करें ) ध: अस्त्राय फट् ( सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं ) क्या आप सरकारी नौकरी चाहते हो तो यहाँ क्लिक करें: Click Hereसभी सरकारी योजना की जानकारी या लाभ लेने के लिए यहाँ क्लिक करें: Click Hereधूमावती ध्यान : इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती धूमावती का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर धूमावती महाविद्या मन्त्र का जाप करें । र का जाप करें ! विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च म्लिनाम्बरा । विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।। काकध्वज रथारुढ़ा विलम्बित-पयोधरा । शूर्पहस्तातिरूक्षाक्षा धूमहस्ता वरान्विता ।। प्रव्रद्धघोणा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा । क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ।। ऊपर दिया गया पूजन सम्पन्न करके सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “धूमावती माला” की माला से नीचे दिए गये Dhumavati Sadhana मंत्र की 23 माला 11 दिनों तक जप करें ! और Dhumavati Sadhana मंत्र उच्चारण करने के बाद धूमावती कवच का पाठ करें ! माँ धूमावती साधना सिद्धि मन्त्र || Maa Dhumavati Sadhana Siddhi Mantra क्या आप सरकारी नौकरी चाहते हो तो यहाँ क्लिक करें: Click Hereसभी सरकारी योजना की जानकारी या लाभ लेने के लिए यहाँ क्लिक करें: Click Here।। धूं धूं धूमावती ठ: ठ: ।। मंत्र उच्चारण करने के धूमावती कवच पढ़ें. दी गई यह महाविद्या Dhumavati Sadhana ग्यारह दिनों की साधना है ! Dhumavati Sadhana करते समय साधक पूर्ण आस्था के साथ नियमों का पालन जरुर करें ! और नित्य जाप करने से पहले ऊपर दी गई संक्षिप्त पूजन विधि जरुर करें

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